Saturday 17 May 2014

" याद सदा तुम रखना "


  ईश्वर ने यह सृष्टि बनाई
 तेरा यहाँ न निज कुछ अपना,
ऐ ! मानवता के छुपे शिकारी
  यह याद सदा तुम रखना |
कर्मों का बड़ा गणित है पक्का
     जो जस करे सो पाए,
   बोये पेड़ बबूल जो जिसने
     आम कहाँ से खाए |

कर नैतिक जीवन का मूल्यांकन
     जोड़ घटा जो आए,
गिन धर पग तब जीवन पथ पर
  अमी हर्ष निधि तुम पाए |

पोत ना कालिख स्वयं के मुख पर
   मन दर्पण उज्जवल रखना ,
     ईश्वर ने यह सृष्टि बनाई
  तेरा यहाँ न निज कुछ अपना ||
  क्यूँ कार्य - कलापों से अपने
   मानवता को लज्जित करते,
   पल-पल बढ़ती सुरसा मुख-सी
 धिक् अघ की न वदन पकड़ते |

   क्यूँ निज समाज और देश के
   आँचल पर हो दाग लगाते,
 अरे क्या ले जाओगे अपने संग
     जग से जाते - जाते |

    बैठ कभी चित्त शांत बना
    मन शीशे में मुख तकना ,
    ईश्वर ने यह सृष्टि बनाई
  तेरा यहाँ न निज कुछ अपना ||

© कंचन पाठक.
All rights reserved.
Published in Sanmarg Jharkhand (11 May 2014)

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